इलेक्शन डायरीः जब 13 दिन और 13 महीने में दो बार गिरी वाजपेयी की सरकार
1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई। इस चुनाव के दौरान भाजपा को 161 सीटें हासिल हुईं और सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते उस समय के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए निमंत्रित किया।
इस दौरान उन्होंने कहा था, ‘‘मैं पिछले 40 साल से संसद में हूं। मैंने यहां कई सरकारें बनते और गिरते देखी हैं। इस सियासी उठापटक भरे दौर में भारत का लोकतंत्र और मजबूत हुआ है। आज मुझ पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि मैं सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकता हूं, मैं इससे पहले भी सत्ता में रहा हूं लेकिन मैंने कभी किसी तरह का अनैतिक काम नहीं किया है। यदि कुर्सी पर बने रहने के लिए पाॢटयों को तोडऩा जरूरी है तो मैं इस तरह का गठबंधन नहीं करूंगा।’’ इस स्पीच के बाद वाजपेयी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
1998 में एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उस समय एन.डी.ए. की सहयोगी ए.आई.ए.डी.एम. की प्रमुख जयललिता ने अपने खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों को वापस लेने और डी.एम.के. के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी पर दबाव बनाया तो वह इस दबाव के आगे नहीं झुके। इसका नतीजा यह हुआ कि संसद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत के दौरान एक वोट से हार गई। इस विश्वास मत के दौरान जयललिता की पार्टी ने भाजपा से समर्थन वापस ले लिया था। 1999 में जब दोबारा चुनाव हुए तो भाजपा एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी और पार्टी को 182 सीटें प्राप्त हुईं और केंद्र में पहली बार 5 साल तक गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में रही।